म्यूकरमाइकोसिस (Black Fungus) आयुर्वेदिक उपचार – 2023

म्यूकरमाइकोसिस का पंचकर्म चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार

कोरोना महामारी के दरमियान बहुत से लोगों ने घरेलू उपचार और आयुर्वेदिक पद्धति से रोगप्रतिकारक शक्ति में इजाफा किया है और कोरोना जैसे भयंकर बीमारी से खुद की रक्षा की। अब उस से दो कदम आगे  म्यूकरमाइकोसिस (ब्लेक फंगस) के केस में भी आयुर्वेदिक पद्धति का बहुत ही अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है।

म्यूकरमाइकोसिस

अहमदाबाद की अखंडानंद आयुर्वेदिक कॉलेज द्वारा ब्लेक फंगस की ट्रीटमेंट कराने वाले दर्दियो का सर्वे किया था। म्यूकरमाइकोसिस के बहुत सारे मरीजों ने FFSS (functional endoscopic sinus surgery) कराने के बाद संतोष कारक परिणाम ना मिलने पर मरीजों ने आयुर्वेद का सहारा लिया था।

क्या है म्यूकरमाइकोसिस?

म्यूकरमाइकोसिस वातावरण में मौजूद रहता है। यह सांस के माध्यम से शरीर में जाता है, लेकिन सामान्य आदमी पर इसका कोई असर नहीं होता। लेकिन कमजोर रोग प्रतिरोधक वाले व्यक्ति को यह अपनी चपेट में लेता है।

म्यूकरमाइकोसिस रक्त धमनियों में प्रवेश कर ऊतक तक पहुंच जाता और रक्त प्रवाह को रोक देता है। इससे ऊतक मर जाते हैं और काले पड़ जाते हैं। नाक से शुरू होकर यह आंखों के चारों ओर की हड्डी तक पहुंचता है। फिर मस्तिष्क पर अटैक करता है। समय से उपचार नहीं होने पर फेफड़ा में भी पहुंच जाता है।

म्यूकार्माइकोसिस का पंचकर्म चिकित्सा पद्धति से उपचार

1) नस्य चिकित्सा
नस्य चिकित्सा यानी नाक द्वारा औषधियों की बूंदों को मुख और मस्तिक के भाग में पहोंचने  में आते हैं। यह औषधीय बूंदे मगज के उस भाग में जाकर फंगस को नियंत्रित और दूर करता है।

2) धूपन चिकित्सा

धूपन चिकित्सा मैं सामान्य तौर पर बीडी में तमाकू की जगह आयुर्वेदिक औषधियों को भरके उसका धूम्रपान कराने में आता है यह औषधियों का धूंआ जब शरीर के अंदर में प्रवेशता है तब वह फंगल को नियंत्रित करता है।

3) मुख लेप चिकित्सा

मुख लेप चिकित्सा में चेहरे पे विविध औषधियों का लेप लगाने में आता है। फंगल इंफेक्शन होने के बाद जो चेहरे के ऊपर सूजन आती है वह दूर हो जाती है और सड़ा, इन्फ्लेमेशन को भी नियंत्रित करता है।

4) बिडालकनो लेप

इस चिकित्सा पद्धति में आंखों की सूजन दूर होती है ओर आंख ना खुलने पर आंखों पर आयुर्वेदिक बिडालक का लेप लगाने में आता है।

5) लीच थेरेपी

आयुर्वेद की अन्य एक विशिष्ट पद्धति लीच थेरेपी यानी कि जणो की सारवार जिसमें शरीर के अंदर दूषित रक्त का स्त्राव करके नए रक्त का संचार करता है

कोरोना होने के बाद जब शरीर में डी-डायमर इनक्रीस होता है यानी कि लोही का गट्ठा बनने लगता है, मृत पेशियों को पुनर्जीवित करने के लिए शरीर के अंगों पर यह लेप लगाने से लोही का गट्टा पिघलने लगता है और नई रक्त वाहिनीओका निर्माण होता है।

यह तमाम प्रक्रिया  जडबा काला पड़ गया हो तो यह पद्धति से लाल रंग में पूर्ववत हो जाता है। दांत हिलते हो या जिसको दांत कढाने की सलाह दी गई हो वह भी यह पद्धति करने से ठीक हो जाते हैं।

गंभीर बीमारी से ग्रसित रोगियों को होता है यह संक्रमण

रिसर्च में पाया गया है कि अबतक कि कैंसर रोगी, बैन मैरो ट्रांसप्लांट करानेवाले व्यक्ति, एचआइवी पीड़ित या कुपोषित लोगों में म्यूकर माइकोसिस का अटैक का खतरा अधिक होता है। शुगर से ग्रसित व्यक्ति भी इस संक्रमण के शिकार होते हैं। लेकिन अब कोविड से उबरे लोगों में भी यह संक्रमण हो रहा है।

किन्हें है ज्यादा खतरा है?

बीमारी के बारे में सर गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ आई सर्जन डॉक्टर शालू बगेजा ने बताया कि किसी भी अन्य फंगल इंफेक्शन की तरह म्यूकोरमाइकोसिस उन मरीजों में ज्यादा देखने को मिलता है जिनकी इम्युनिटी कमजोर होती है, या फिर जो मरीज मधुमेह, किडनी की बीमारी से ग्रसित होते हैं।

यह बीमारी उन लोगों को भी अपनी चपेट में लेती है जिनका ट्रांसप्लांट हुआ हो। लेकिन अब हमे कोरोना के मरीजों में भी यह लक्षण देखने को मिले हैं, इसकी बड़ी वजह है इन मरीजों की इम्युनिटी का कमजोर होना। दरअसल कई कोरोना के मरीजों को स्टेरॉइड या अन्य दवाएं दी गई हैं जिसकी वजह से उनकी इम्युनिटी कमजोर हो गई है।

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डायबिटीज के मरीजों में 
स्टेरॉयड का अधिक सेवन करने वालों में 

ICU में रहने वाले मरीजों में 

गंभीर बीमारियों का शिकार हो 

पोस्ट ट्रांसप्लांट और मैलिग्नेंसी वाले लोगों में 

वोरिकोनाज़ोल थेरेपी वाले लोगों में 

म्यूकरमाइकोसिस जैसी बीमारी का होम रेमेडीज से इलाज:

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म्यूकरमाइकोसिस का आयुर्वेदिक उपचार:

काली मिर्च:
सर्दी, खांसी और जुकाम से पीड़ित लोगों के लिए काली मिर्च एक बेहतरीन औषधि के रूप में कार्य करती है। आयुर्वेद में भी इसके सेवन से सर्दी और जुकाम की समस्याओं को ठीक करने की बात कही गई है। फंगल इंफेक्शन में भी ये मददगार हो सकती है। आप इसे चाय और शरबत के अलावा सब्जियों में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

आंवला:
आंवला विटामिन सी का समृद्ध स्रोत माना जाता है और इसमें फाइबर भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जो पाचन को सुधारने में मदद करता है। ये इम्यूनिटी बूस्ट करने में सहायता है जिससे हमें फंगल इंफेक्शन से भी लड़ने में मदद मिल सकती है। आंवला प्राकृतिक लैग्जेटिव का काम करता है और शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को निकालता है।

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तुलसी:
रिकवरी रिकवरी के वक्त डेली तुलसी के सेवन से भी फंगल इंफेक्शन से बचाव किया जा सकता है। तुलसी के पत्तों में विटामिन और खनिज मौजूद होते हैं। इसमें मुख्य रूप से विटामिन सी, राइबोफ्लेविन, नियासिन, कैल्शियम, जिंक और आयरन आदि पाए जाते हैं।

जिंक और विटामिन  सी हमारे इम्यून सिस्टम को बूस्ट करता है। आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग तमाम तरह की औषधियां बनाने में किया जाता है। तुलसी में सिट्रिक, टार्टरिक एसिड भी पाया जाता है।

गिलोय:
गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है, जिसे आयुर्वेद में गिलोय के नाम से जाना जाता है। संस्कृत में इसे अमृता कहा जाता है, क्योंकि यह कभी नहीं मरता है। कोविड पीरियड में तो सभी लोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय का इस्तेमाल खूब कर रहे हैं लेकिन रिकवरी के वक्त भी इसका प्रयोग लाभकारी होगा।

अश्वगंधा:
अश्वगंधा का डेली सेवन चयापचय यानी मेटाबॉलिज्म सही रहता है और मोटापे की समस्या से छुटकारा मिलता है। इसमें शरीर में पैदा होने वाले हानिकारक फ्री रेडिकल्स (मुक्त कणों) को नियंत्रित करने की क्षमता होती है और ये इम्यूनिटी के लिए फायदेमंद है। साथ ही अब आयुर्वेदिक वैद्य शरद कुलकर्णी इसे फंगल इंफेक्शन में भी मददगार बता रहे हैं।

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लहसुन:
चूंकि म्यूकरमाइकोसिस उन लोगों को भी अपना शिकार बना रहा है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है और लहसुन का सेवन करने से इम्यूनिटी बूस्ट होती है। लहसुन में कैल्शियम, आयरन, कॉपर, पोटेशियम और फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके यही गुण इसे उत्तम औषधि बनाते हैं।

लौंग:

लौंग हानिकारक बैक्टीरिया को मारने की ताकत रखता है।लौंग एक कृमिनाशक यानी कीड़े मारने वाली ऐंटिफंगल और पेनकिलर होती है जो शरीर में हुए जख्मों को भरने में भी मददगार है। दांत दर्द और सांसों की बदबू से लौंग मुक्ति दिलाने के अलावा फंगल इंफेक्शन भी मददगार साबित हो सकती है।

सौंठ या अदरक:
चाय और काढ़ा में अदरक का इस्तेमाल करना तो आम बात है। लेकिन अगर आप इसे दूध में उबालकर और सब्जियों में भी प्रयोग करेंगे तो आपको कोविड और फंगल इंफेक्शन से काफी राहत मिलेगी।

नीम के पत्ते:
सुबह खाली पेट नीम के पत्तों के डेली सेवन करने से हम शरीर के कई विकारों को संतुलित करने में मदद मिलती है। साथ ही स्किन के लिए भी नीम बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ है। नहाने में भी नीम साबुन और फेस वॉश का प्रयोग कर सकते हैं।

बहुत से लोग नीम की पत्तियों को उसके कड़वे स्वाद की वजह से नहीं खाते। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार रोज सुबह खाली पेट नीम का सेवन करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

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हल्दी वाला दूध:
डॉक्टर के अनुसार, ब्लैक फंगस में हल्दी वाला दूध का सेवन आप तमाम तरीके से कर सकते हैं। इसे आप सब्जी याां खाने की और चीजोंं  के साथ-साथ दूध में भी मिलाकर पी सकते हैं। हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल तत्व पाए जाते हैं जो शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। हेल्थ के लिए हल्दी वाला दूध काफी फायदेमंद है।

फाइबर, विटामिन सी, विटामिन के, पोटैशियम, कैल्शियम, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम और जि़ंक जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके सेवन से हमारे शरीर की इम्युनिटी बूस्ट होती है जिससे हम संक्रामक रोगों से अपना बचाव कर सकते हैं। हल्दी में वात-कफ दोषों को कम करने वाले गुण होते हैं और यह शरीर में खून बढ़ाने में मदद करती है। डायबिटीज के मरीज के लिए भी हल्दी का सेवन अच्छा माना जाता है 

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FAQ

म्यूकोर्मिकोसिस औऱ किस नाम से पहचाना जाता है?

ब्लेक फंगस

म्यूकोर्मिकोसिस कौन से देश मे है?

चीन और भारत

क्या म्यूकोर्मिकोसिस इलाज संभव है?

म्यूकोर्मिकोसिस के सफल प्रबंधन के लिए शीघ्र निदान की आवश्यकता होती है, अंतर्निहित जोखिम वाले कारकों को उलटना, सर्जिकल डिब्राइडमेंट और सक्रिय एंटिफंगल एजेंटों के शीघ्र प्रशासन की आवश्यकता होती है। हालांकि, म्यूकोर्मिकोसिस हमेशा इलाज के लिए उत्तरदायी नहीं होता है।

फंगल इंफेक्शन में कौन से खाने से परहेज करें?

परिष्कृत शर्करा, कार्ब्स और उच्च-लैक्टोज डेयरी उत्पाद कैंडिडा और अन्य “खराब” सूक्ष्मजीवों को बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं (24)। यदि आपके पास एक दबी हुई प्रतिरक्षा प्रणाली है, तो इनमें से बहुत से खाद्य पदार्थ खाने से संक्रमण को बढ़ावा मिल सकता है।

म्यूकोर्मिकोसिस मेडेसीन नाम

म्यूकोर्मिकोसिस एक गंभीर संक्रमण है और इसका इलाज डॉक्टर के पर्चे वाली एंटिफंगल दवा से किया जाना चाहिए, आमतौर पर एम्फोटेरिसिन बी, पॉसकोनाज़ोल या इसावुकोनज़ोल। ये दवाएं एक नस (एम्फोटेरिसिन बी, पॉसकोनाज़ोल, इसावुकोनज़ोल) या मुंह (पॉसकोनाज़ोल, इसावुकोनज़ोल) के माध्यम से दी जाती हैं।

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